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आदय्य (११६५)

पूर्ण नाम: आदय्य
वचनांकित : सौराष्ट्र सोमेश्वर
कायक (व्यवसाय): व्यापार

मूर्ति के भीतर काँसा की तरह
करघे के ताने वाले की बाने की तरह
सोने में मिले रंग की तरह
वस्त्र में धागे की तरह
मुझमें अभिन्न रहा न हो, सौराष्ट्र सोमेश्वर ।/ १४७८ (1487) [1]

करस्थल में लिंग हो तो
वह हस्त ही कैलास है, वह लिंग ही शिव है।
इसलिए यहाँ पर ही है कैलास।
इससे अलग कोई चाँदी का पर्वन ही कैलास समझकर
वहाँ पर के रुद्र ही शिव समझकर
कैलास जाने आने का भ्रम न रखना सुनो, भाई।
काया के अनुग्रह लिंग में श्रद्धा न हो तो
और कहाँ का विश्वास?
एकाग्रता के बिना विभक्त होकर नष्ट न हो जाओ, सुनो भैया
अंग में लिंगांग का संग जानकर
अंतरंग, बहिरंग, एक होकर
अग्निशिखर के संग में कपुर जलने के जैसे
सर्वांग में लिंग के स्पर्ष से
अंगभाव मिटकर, लिंगभाव में तल्लिन होने पर
उससे प्राप्त सुख उपमातीत है, हे सौराष्ट्र सोमेश्वर। /1482 [1]

आदय्य (११६५) आदय्या मूलत: सौराष्ट्र के हैं। व्यापार करने पुलिगेरे आकर, जैन कन्या पद्मावति के विवाह कर शसुर से वाग्वाद करते हैं। ’आदय्य रगळे’ और ’सोमनाथ चरित्र’ से पता चलता है कि इन्होने सौराष्ट्र से सोमनाथ को ले आकर पुरिगेरे (लक्ष्मेश्वर) के सुरहोन्ने बसदि में स्थापित किया।

पत्थर में सोने का उद्‌गम हो तो
सोना पत्थर का सेवक होगा क्या?
सीप में मोती का उद्‌भव हो तो
मोती सीप का सेवक होगा क्या?
धरती पर सुरतरु का उद्‌भव हो तो
सुरतरु धरती का सेवक बनेगा क्या?
जननी के गर्भ में महान शरण जनम लेगा तो
जननी जनक का सेवक होगा क्या?
सौराष्ट्र सोमेश्वर आपके शरण
स्वतंत्रशील अग्रगण्य हैं । / १४८३ (1483) [1]

घढे को बनानेवाले कुम्हार उस घडे में न रहने के जैसे
फसल बोनेवाला उस फसल में न होने के जैसे
रथ बनानेवाला रथीक उस रथ में न होने के जैसे
विश्व के सूत्रधारी शिव यंत्र और यंत्रि के समान होने से
सब कुछ शिव कहनेवाले अज्ञानियों को मानेगा क्या
हमारे सौराष्ट्र सोमेश्वर? / १४९१ (1491) [1]

’सौराष्ट्र सोमेश्वर’ अंकित में वचनों और स्वर वचनों की रचना की है। इनके ४०३ वचन उपलब्ध हुए हैं। इनमें शरण धर्म तत्वों का विवेचन व्यापक रूप में हुआ है। साथी ही साहित्यिक सत्व और तात्विक प्रौढता दोनों का सुंदर सम्मिलन भी हुआ है।

चौसठ विधाओं को सीखने से क्या हुआ?
अष्टाषष्टि क्षेत्रों के दर्शन से क्या हुआ?
व्रत छोड़ने से क्या हुआ? व्रत आचरण से क्या हुआ?
ज्ञान का आचार दृढ़ हुए बिना
घनलिंग का प्रकाश स्वयं होनेवाले शरण के बिना दुसरों को
सौराष्ट्र सोमेश्वर लिंग सुख नहीं मिलता। / १४९२ (1492) [1]

वेदों के पीछे मत भागो, मत भागो
शास्त्र के पीछे मत घूमो, मत घूमो
पुराणोंके पीछे, पड़ो मत, पड़ो मत
आगमों के पीछे, तड़पो मत, मत तड़पो
सौराष्ट्र सोमेश्वर का आश्रय लेकर
शब्दजालों में पड़कर मत थको, मत थको। /1511 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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