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अग्घवणि हंपय्य (१३००)

पूर्ण नाम: अग्घवणि हंपय्य
वचनांकित : हंपेय विरूप
कायक (व्यवसाय): अग्घवणि (शुद्ध जल) भक्तों के लिए लाना

झुठ न बोलता है भक्त,
बूरी आदतों में न पड़ता भक्त
कामवासनाएँ उसे तृण समान है देखो,
चाहने वाला भक्त नहीं,
दया उसके वश में है,
स्मृती-ध्यान उसका अपना सेवक हैं।
वह नहीं जानता क्रोध क्या होता हैं,
तीनों ताप उसे छू नहीं सकते
बाधाएँ मिट गयी हैं।
लिंग को अपने में लिए हुए वह आनंद स्वरूपी है।
उसका पथ लोक के लिए नया है,
लोक का पथ उसके लिए नया है।
उसके लिये लिंग ध्यान
लिंग के लिए उसका ध्यान
महा महिमा की प्रशंसा करते न बनती
पन्नगधर सूनो तो, चेन्न हंपेय विरूपय्या
आपमें विश्वास करने वाला सत्यशरण आनंदस्वरूपी है। / १४१७ (1417)[1]

अग्घवणि हंपय्य (१३००) हंपय्य कुंतल देश के मुकुंदपुर के निवासि थे। इस शरण का कायक था अग्घवणि (शुद्ध जल) भक्तों के लिए लाना। ’हंपेय विरूप’ वचनांकित से लिखे इनके चार वचन मेले हैं। उनमें पंचाक्षरि मंत्र की महिमा और सद्‌भक्त की स्थिति का निरूपण हुआ है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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