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अंबिगर चौडय्य (११६०)

पूर्ण नाम: अंबिगर चौडय्य
वचनांकित : अंबिगर चौडय्य
कायक (व्यवसाय): केवट वृत्ति

आग को सत्य मान ले तो, वह काष्ट के बिना मिथ्या है
काष्ट में छीपे हुए भी न जलाने का भेद जानेंगे तो
उसे प्राणलिंगी कहूँगा, कहा अंबिग चौडय्या ने। / १३७९ (1379)[1]

अरण्य में प्रवेश किया था
गरम पानी में डाला था
जटाएँ बाँधकर, विभूती धारण करवाया था,
वस्त्र त्याग करवाया था
पूरे ज़ोर से बाल खिंचवाया था
नगर भर में प्रतिवाद करवाया था
इस लूभानेवाली माया की
दिखावे के धार्मिकों की बातों से
लज्जीत होता हूँ, ऐसा कहा अंबिग चौडय्या ने। / १३८० (1380)[1]

अंबिगर चौडय्य (११६०) बसव युग के निष्ठुर, निर्भय शरण चौडय्य नव चलाने की केवट वृत्ति करते थे। इनकी वृत्ती का पता इनके नाम के साथ जोडे विशेषण से तथा वचनों में प्रयुक्त वृत्ति परिभाषा से चलता है। इन्होंने अपने नाम को ही वचनांकित बना लिया है और इनके २२८ वचन उपलब्ध हुए हैं। वचनों में प्रधान रूप से समाज की विडंबना की गयी है। जातियता और डांभिक आचरण की कडी आलोचना चौडय्या ने की है। कुछ वचनों में धार्मिक तत्व जिज्ञासा भी चली है।

अरण्य में ढूँढने के लिए वह काँटेदार काष्ट नहीं है,
नदि तालाब में ढूँढने के लिए वह मछली मेंढ़क नहीं है,
तपस्या करना चाहूँ तो वेशधारण करने से वह प्रसन्न न होता
देह को दंडित करना चाहूँ तो वह प्रसन्न होकर देनेवाला नहीं
अष्टतनु के अंतर्य में छिपे लिंग को
साधना के द्वारा ही देखा अंबिग चौड़य्या ने। /1381[1]

असुरों की रुंड़ मालाएँ नही है,
त्रिशूल डमरू नहीं है,
ब्रह्मा कपाल नहीं है,
भभूतधारी नहीं है,
वृषभ वाहन नहीं है,
ऋषियों के साथ कभी नहीं रहा
इहलोक का चिन्ह भी जिसका नहीं
उसका कोई नाम नहीं- कहा अंबिग चौड़य्या ने। /1387[1]

धारण किए हुए लिंग को हीन मानकर
पहाढ के लिंग को श्रेष्ठ मानने की रीती देखो,
ऐसे महामूर्खों को देखोगे तो
मज़बूत जूते लेकर
फटाफट मारो, बोला हमारे अंबिग चौड़य्या। /१३९३ (1379) [1]

पत्थर की प्रितमा की पूजा करके
कलियुक के गधे के रूप में पैदा हुए।
मिट्टि की देवप्रतिमा की पूजा करके मानहीन हुए।
पेड को भगवान मानकर पूजा करके मिट्टी में मिल गये।
भगवान की पूजा करके स्वर्ग नहीं जा सके।
जगत मे व्याप्त परशिव में
किंकर भाव के शिवभक्त ही श्रेष्ठ है
कह हमारे अंबिगर चौड़य्या ने। /1395[1]

पहाढी मंदिर के स्थावर लिंग को श्रेष्ठ मानकर चलनेवाले मूर्ख
अपने इष्टलिंग को दे दिजिए हमें
हमारे हाथ में देंगे तो, बीच पानी मे ले जाकर
बाँधकर-डूबोकर
आपको लिंगैक्य करूँगा कहा
हमारे अंबिग चौडय्या ने। /1407 [1]

गूड का चौकाकार न होगा तो क्या मिठेपन का चौकाकार होगा?
संकेत की पूजा न हो तो क्या ज्ञान की पूजा होगी?
ज्ञान विवेक धृढ हो जाए तो, करस्थल के चिन्ह का
वही पर लोप होगा, ऐसा कहा अंबिग चौडय्या ने। /1408 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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