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आनंदसिद्धेश्वर (1660)

पूर्ण नाम: आनंदसिद्धेश्वर
वचनांकित : आनंदसिद्धेश्वर

मृदु, कठिन, शीतोष्णादि को जब तक न समझेंगे तब तक ।
समर्पित का निराकरण नहीं करना चाहिए।
अंगप्राप्ति के बाद, लिंगदेव के बिना, ज्ञान न प्राप्त होगा!
अभंग शरण के लिए मांड़ भी ठीक है, अमृत भी ठीक है।
तवा भी ठीक है, बरतन भी ठीक है; टाट भी ठीक है, टीन भी।
रंभा भी ठीक है, साधारण स्त्री भी; राजा भी ठीक है, रंक भी।
गाँव भी ठीक है, जंगल भी; स्तुति भी ठीक है, निंदा भी।
इन सभी से परे महापुरुष के अस्तित्व को
भूमि में रहनेवाले मानव, कैसे जानेंगे, आनंद सिद्धेश्वर! (2216) [1]

'आनंद सिद्धेश्वर' वचनांकित है, परंतु कर्तृ का नाम धाम का कोई पता नहीं। संसार सागर में डूबे लौकिकों की निंदा और शरणों की धारणा इनमें निरूपित हैं।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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