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अंगसोंकिन लिंगतंदे (लिंग पिता) - ११६०

पूर्ण नाम: अंगसोंकिन लिंगतंदे (लिंग पिता)
वचनांकित : भोग बंकेश्वर लिंग

काष्टांतर्गत अग्नि अपने आप जल सकती है क्या?
शिलांतर्गत दीप्ति उस प्रकाश को अपने आप दीप्ति कर सकती है क्या?
उसी तरह कलंक की भक्ती, पापी की विरक्ती को
मथन कर देखे बिना सत्यासत्यता का पता न चलता।
सत्य और असत्य को प्रत्यक्ष्य प्रमाण के बिना
सही है ऐसा निश्चय न करना चाहिए।
गुरु हो, लिंग हो या जंगल हो
परिक्षा न करके ग्रहण करनेवाले की भक्ती और विरक्ती
छेद वाले कुंभ के पानी के समान, सूत्रहीन गुडीया के समान
नेत्र से चूकी दृष्टि के समान व्यर्थ है।
जड़ ऊपर हो ऐसे पौधे के लीए पानी कैसे दे?
इसप्रकार कोई भी क्रीया हो, भावशुद्दधता होनी चाहीए
तब भोग बंकेश्वर लिंग के संग का सुख शरण को मिलेगा। / १३७५ (1375)[1]

अंगसोकिन लिंगतंदे के 11 वचन मिले हैं जो ’भोग बंकेश्वर लिंग’ वचनांकित से लिखे गये है। इनके वचन ज्यादातर तात्विक हैं और वे आत्म- ज्ञान के लिए लगने वाले सगुण-निर्गुण का स्वरूप, साकार-निराकार को एक होने की भावना और भरितार्पण की रीति-नीति को समझाते है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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