पूर्ण नाम: |
बालबोम्मण्णा |
वचनांकित : |
विरशूर रामेश्वर लिंग |
सांप के बिल में डण्डा टूँसने से
डण्डे के पीछे घुसे साँप कि तरह है वह निश्चय वस्तु ।
इसे समझते ही निज वस्तु के गुण मोह मे मुद्रित हो ऐसा
विरशूर रामेश्वर लिंग में द्वैत भावना मिटनी चाहिए। / १८४९ [1]
‘भैरवेश्वर काव्य के कथामणिसूत्र रत्नाकर' में इनके बारे में इस प्रकार बताया गया है कि एक बार सिद्धरामय्या सोलापुर में देवालय बनवाकर लिंगपूजा कार्य संपन्न कर रहा था। तब बालबोम्मण्णा अपने पास लिंगप्रतिष्ठा कर पूजने के लिए धन न होने से चिंतित हुए। सिद्धरामय्या ने उनकी मनस्थिति जान ली और उसे पास बुलाकर सब्बल, कुदाली देकर आंगन में खोदने के लिए कहा। ज़मीन खोदने पर स्वर्णो का पात्र मिला। उस स्वर्ण मुद्राओं से देवालय बनवाकर और उसमें लिंग प्रतिष्ठा कर पूजा करते बोम्मण्णा सुखी रहे। इस कथा के समर्थन में इनके वचनों में उल्लेख मिलते हैं। इनके 'वीरशूर रामेश्वर' वचनांकित के 11 वचनमिले हैं। उनमें शरणस्तुति, लिंगनिष्ठा और तत्वबोध व्यक्त हुए हैं।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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