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बसवलिंगदेव (1700)

पूर्ण नाम: बसवलिंगदेव
वचनांकित : ‘मत्प्राणनाथ महाश्रीगुरु सिद्धलिंगेश्वर’

स्वामी मुझमें आप ढूँढेंगे तो
किंचित भी अच्छे गुण नहीं मिलेंगे।
मेरे बारे में विचार करेंगे तो
सात समुद्र, सात द्वीप के समान अपराध है।
हे पिता मेरा अपराध न देखते हुए
अपनी कृपा-दृष्टि से मेरा पालन कीजीए।
परमाराध्य, परात्परमूर्ति
श्री गुरुलिंग जंगम,
आप चैदाह लोकों में
अपराध क्षमा करने वाले ऐसी प्रशस्ति है, देखो
हरहर शिवशिव जय जय करुणाकर
मत्प्राणनाथ महा श्रीगुरु सिद्ध लिंगेश्वरा। /२४३९ [1]

बसवलिंगदेव (1700) आप तोंटद सिद्धलिंगेश्वर की शिष्य परंपरा के गुरु सिद्धदेव के शिष्य थे। ये हरदनहळ्ळि के थे। इनका वचनांकित है ‘मत्प्राणनाथ महाश्रीगुरु सिद्धलिंगेश्वर’ । इनके कुल 36 वचनप्राप्त हुए हैं। ये गुरु सिद्धदेव से संकलित "चिदैश्वर्य चिदाभरण" कृति के 'महा ज्ञानिय सर्वपरित्याग स्थल' में एक ही ओर संग्रहित हैं। सभी में गुरु के प्रति निवेदन है।

मिट्टी रूपी आशा के मोह में पड़ी है
मेरी जीवात्मा।
स्त्री रूपी आशा मे पिघलकर चिंतित हुई है
मरी अंतरात्मा।
सोने रूपी आशा के पाशमल में नष्ट हुआ है
मेरा परमात्मा।
धन धान्य की आशा में नष्ट हुई
मेरी निर्मलात्मा।
पिता, माता, रिश्तेदार रूपी आशा के सरोवर में लड़ते हुए मरी है
मेरी ज्ञानात्मा।
भाई, बडे भाई, बहन जीजी, भाभी साली रूपी
आशा की हथकडी में फँसी है
मेरी भूतात्मा।
ऐसी जडात्माओं के संग से पथभ्रष्ट हूआ मैं
हे गुरु, अब मेरा उद्धार कैसा?
श्री गुरुलिंग जंगम,
हरहर शिवशिव जय जय करुणाकर
मत्प्राणनाथ महा श्री गुरु सिद्ध लिंगेश्वरा। /२४३८

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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