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बोक्कसद चिक्कण्णा (1160)

पूर्ण नाम: बोक्कसद चिक्कण्णा
वचनांकित : बसवण्णाप्रिय नागरेश्वर लिंग
कायक (काम) कोषपालों (treasurers)

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संगीत एक है पर राग अनेक, जैसे
स्वर एक ही है, राग विस्तार के रंग अनेक, जैसे
गायों के वर्ण अनेक, पर क्षीर एक ही।
कायक अनेक हैं, पर
कार्य रीति, शरणों का साथ,
शिवलिंग में, मिलन एक भाव होना चाहिए
बसवण्णप्रिय, नागरेश्वरलिंग जानने के लिए। / 1878 [1]

चिक्कण्णा राजा बिज्जल के यहाँ खज़ाने के अधिकारी थे। ‘बसवण्णाप्रिय नागरेश्वर लिंग' वचनांकित में रचे इनके 10 वचन मिले हैं। अपनी वृत्ति मूल खज़ाने को ही बिम्ब, रूपक बनाकर तत्व विवेचन करते हैं। इष्टलिंग, प्राणलिंगों का अभेदत्व और कायक का महत्व अपने वचनों में प्रतिपादित करते हुए बताते हैं। कि कायक में ही शिव को, शिवज्ञान को देखना चाहिए।

ठंड है तो गरमी का प्रतिपादन करे,
गरमी है तो ठंड का प्रतिपादन करे,
दिन में उठकर, रात में सोने तक,
अद्वैत, असत्य है; देखो,
इस कारण, क्रिया को भूला नहीं
ज्ञान को शून्य समझकर त्यागा नहीं
वह तो शिला के अंतर्गत पावक है, तिलांतर्गत तैल है।
उनके संबंध में कुल को पहचानना चाहिए
बसवण्णप्रिय नागरेश्वर लिंग को जानने के लिए। / 1879 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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