पूर्ण नाम: |
चंदिमरस
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वचनांकित : |
सिम्मलिगे चेन्नराम
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चंद्रमा के प्रकाश से चंद्रमा को
सूर्य के प्रकाश से सूर्य को
दीप के प्रकाश से दीप को देखने जैसे
अपने प्रकाश से अपने को ही देखने पर।
तुम्हारी भावना तुम ही हो।
सिम्मलिगे चेन्नराम। / 1683 [1]
ये बसवण्णा के वरिष्ठ समकालीन थे। कृष्णा नदी तट का चिम्मलिगे नाम गाँव में इनका जन्म हुआ। निजगुणयोगी इनके गुरु थे। ये मूलतः ब्राह्मण थे। गुरु से दीक्षा पाकर शरण बने। 'सिम्मलिगे चेन्नराम' इनका वचनांकित है। 157 वचन उपलब्ध हुए हैं। उनमें ज्ञान, आत्मज्ञान, शरणस्तुति और अनुभाव सम्मिलित हुए हैं
आइना अपना है तो क्या
आइना दूसरे का है तो क्या?
अपना रूप दिखाई पडे क्या काफ़ी नहीं ?
सद्गुरु कोई भी हो तो क्या
अपना ज्ञान बोध कराये तो क्या काफ़ी नहीं?
सिम्मलिगे चेन्नराम। / 1693 [1]
तन किंकर न होकर, मन किंकर न होकर
इंद्रिय किंकर न होकर, आत्मा किंकर न होकर
श्रुति किंकर न होकर,
इन सबको पूरा छोड़कर
कुछ भी कहे बिना, सीमा न चूकते
सदगुरु का किंकर बनकर
भवमुक्त हुए लोगों का क्या कहूँ बोलो
सिम्मलिगे चेन्नराम। / 1694 [1]
राह पर जानेवाले एक इंसान पर
बाघ दावानल राक्षसी जंगली हाथी
चारों दिशाओं से पीछा करने लगे जब,
उन्हें देख भयाक्रांत हो कहीं भागने की दिशा न समझ,
कुआँ देखकर गिरने लगा तो ।
साँप देखकर जैसे चूहा काटे बेल पकड़कर खड़ा हुआ, तब
मधुमक्खी बदन में काटने लगे फिर ।
नासिकाग्र पर एक बूंद मधु गिरे,
उस मधु को देख, अब तक का सारा दुःख सब भूल कर
जिह्वाग्र पर उस मधु का सेवन करने जैसे
इस संसार के सुखों पर विचार करने पर वह दुःख का सागर ही है।
इसे समझकर कि सभी विषयों में सुख इस प्रकार है।
निर्विषयी होने की स्थिति तुम ही हो।
सिम्मलिगे चेन्नराम। / 1699 [1]
जो कहते हैं जान गये, जान गये,
वे व्यर्थ भ्रम में तड़प रहे हैं।
दिन अंधेरा, दिन अंधेरा
दुतरफ़ा की बातें करनेवाले सभी
बुद्धिमानों को दिन में ही अंधेरा
ज्ञानी कहलानेवाले लोगों को अज्ञानी बनाया
सिम्मलिगे चेन्नराम रूपी नाम के रहस्य ने। / 1700
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References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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