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दसरय्या (1160)

पूर्ण नाम: दसरय्या
वचनांकित : दसरेश्वरलिंग
कायक (काम): बगीचे में जाकर फूलों को तोड़कर लाकर पूजा करना इनका कायक

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पृथ्वी का आंशिक अंग होकर
जल के आंशिक शुक्ल शोणित होकर
तेज की आंशिक भूख बनकर ।
वायु की आंशिक जीवात्मा बनकर
आकाश का आंशिक ब्रह्मरंध्र बनकर
इस प्रकार ये पाँच गुण जब तक है।
हार जीत से मुक्ति नहीं।
इनको अपनी-अपनी जगह छोड़कर
इनके मोह से मुक्त करो
मेरे अंदर आप अल्पता का व्यवहार न करें
आपको मेरे बारे में क्षुल्लकता न चाहिए।
वह मेरा दोष नहीं ।
वह आपका दोष है दसरेश्वर लिंग। / 1795 [1]

बसवेश्वर के समकालीन दसरय्या रामगोंड़े गाँव के थे। इनकी पत्नी का नाम वीरम्मा है। प्रतिदिन बगीचे में जाकर फूलों को तोड़कर लाकर पूजा करना इनका कायक था। एक बार तोड़ते समय फूल का पटल फट जाने से 'हाय दर्द हो रहा है' ऐसी ध्वनि सुनाई पड़ी। तब से वे पौधे से फूलों को न तोड़े, नीचे गिर पड़े फूलों को ही उठाकर लाते और पूजा करते थे। इसमें उनकी उत्कट अहिंसावादी भावना व्यक्त होती है। 'दसरेश्वरलिंग' वचनांकित में रचे 10 वचन प्राप्त हैं। उन वचनों में प्रमुख रूप में अहिंसा भाव व्यक्त हुआ है। उनकी भाषा और भाव की सरलता का प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर प्रतिबिंबित हैं।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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