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देशिकेन्द्र संगनबसवय्या (लगभग 17वीं शती)

पूर्ण नाम: देशिकेन्द्र संगनबसवय्या
वचनांकित : निरंजन चेन्न बसवलिंग

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खेलकर थकना नहीं जानते मेरे पाँव,
काम करके थकना नहीं जानते मेरे हाथ,
देखकर थकना नहीं जानती मेरी आँखें,
गाकर थकना नहीं जानती मेरी जीभ,
सुनकर थकना नहीं जानते मेरे कान,
माँगकर थकना नहीं जानते गुरु निरंजन चेन्नबसवलिंग
आपके शरण की प्रीति में मेरे भाव । / 2419 [1]

इनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। 'देशिकेन्द्र' कहलाने से शायद ये विरक्त परंपरा के चर जंगम रहे होंगे। शायद इनका स्थान सोल्लापुर (शोलापुर, महाराष्ट्र) के समीप करजिगे रहा होगा। 'निरंजन चेन्न बसवलिंग' वचनांकित में रचे इनके 1242 वचन मिले हैं। वे वचन 'षट्स्थ ल वचन' शीर्षक से संग्रहित हैं। इसमें कुल 53 स्थलों की कल्पना की गयी है। कुछ स्थल आज तक न नामकरण किये नूतन स्थल हैं।

हाथी का वेश धारण कर कुत्ते की रीति से व्यवहार करने वाले
मूर्ख मानवों से अविरल भक्ति संभव है क्या?
कथनी एक तरह, करनी एक तरह
बुजुर्गों के चरण में नमस्कार कर न चलनेवाले
व्यभिचार से जनित प्राणी क्या जानें
अनादि के स्थल गति के गुरु निरंजन चेन्नबसवलिंग को ? / 2420 [1]

दिखता जो वह झूठ है, सच है जो दिखता नहीं,
देख पाने वाले आगे जो देखते वही सत्य है।
देख न पाने वाले आगे जो न देखते वही सत्य है।
गुरु निरंजन चेन्नबसवलिंग में
शरण ने न द्वैत को देखा न अद्वैत को। / 2421 [1]

पत्थर के भीतर की आग जले बिना नहीं दिखती।
काष्ठ के भीतर की आग स्पर्श बिना न दिखती
बीज के भीतर का सार जल और मिट्टी के बिना नहीं दिखता
यही कारण है कि शरण के आंतर्य की बातें
शरण के आंतर्य की होती, दूसरों के अनुसार नहीं
गुरु निरंजन चेन्नबसवलिंग में शरण शब्दसूतकी नहीं। / 2422 [1]

काया को लिंग बनाकर देखना ही सत्य है।
मन को लिंग बनाकर देखना ही सत्य है।
भाव को लिंग बनाकर अनुभव कर देखना ही सत्य है।
गुरु निरंजन चेन्नबसवलिंग में,
लिंगैक्य शरण को साक्षात्कार न कर सकना ही सत्य है। / 2423 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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