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एलेश्वर केतय्या (1166)

पूर्ण नाम: एलेश्वर केतय्या
वचनांकित : ऍलेश्वर लिंग
कायक (काम): कृषि (Farmer)

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कोई भी व्रत-नियम करने पर भी
उस व्रत-नियम का भाव शुद्ध होना चाहिए।
क्षत्रियत्व, कृषि, याचकता, वाणिज्यत्व से प्राप्त धन संपत्ति में
बाह्य व्यवहार - अंतरंग का क्रम
दोनों में शुद्ध रहनेवाला भक्त का अंग ही
एलेश्वर लिंग का अंग है। / 1602 [1]

ये गुलबर्गा जिला ऍलेरी (ऍलेश्वर) गाँव के हैं। इनकी पत्नी सायिदेवम्मा है। कृषि कायक इनका है। इन्होंने 'आचार, तन के लिए आश्रय, ज्ञान मन के लिए आश्रय' वाले नीति का अनुसरण करनेवाले थे। 'ऍलेश्वर लिंग' वचनांकित से 74 वचन मिले हैं। सभी में अधिकतर व्रत-नियम-शील-आचार के संबंध में ही कही गयी है।

जंगम और भक्तों की सह पंक्ति में
गुरु है, राजा है, वह मेरा परिवार है समझकर
मृष्टान्न विशेष रूप में परोसने पर
उसे स्वयं स्वीकारे तो वह अमेद्य खाना है
जिह्वा की चपलता में फँसकर
मरनेवाली मछली की भाँति न हो।
इसे समझे तो
एलेश्वर लिंग को समझ पाएगा। / 1604 [1]

क्रिया की रीति को समझने वाले को गुरु कहूँगा,
क्रिया की रीति को समझने वाले को लिंग कहूँगा,
क्रिया की रीति को समझने वाले को जंगम कहूँगा,
इस प्रकार यह त्रिविध मूर्ति
आचार के अनुकूल होकर
सोने में छिपे रंग के समान।
उस रंग को भेदकर सोना बनने जैसे
इस प्रकार आचार और ज्ञान में अंतर न रहकर
आचार ही कुल, अनाचार ही कुलहीन होने के समान
इसमें पक्षपात नहीं, एलेश्वर लिंग से भी पूछना नहीं। / 1605 [1]

पिता को पुत्र आमंत्रितकर
पुत्र को पिता आमंत्रितकर
जीजा को साला आमंत्रितकर
साले को जीजा आमंत्रितकर
इस प्रकार
अपने बंधुजनों को आमंत्रितकर उन्हें
जंगम मानकर उनके साथ खानेवाले
महा निर्लज्ज का व्रत
एलेश्वर लिंग में सुसंग नहीं। / 1606 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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