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गणदासी वीरण्णा (17वीं शती)

पूर्ण नाम: गणदासी वीरण्णा
वचनांकित : शांतकूडलसंगम देव

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कुल दो ही हैं।
भक्त एक कुल है तो भवि दूसरा कुल है।
जिसका अंग ही अष्टावरण हो और पंचाचार ही प्राण हो
ऐसे भक्त का कुल जो ढूंढेगा ।
वह हीन जन्मों में आने से बचता नहीं।
जल से निर्मित मोती फिर से क्या पानी बनेगा ?
आकाशगामी धूम वापस आयेगा क्या?
वामन मुनि के बड़े भक्तों के घर में पूजा के बाद
कुल के नाम से घबराकर, प्रसाद न खाने के कारण
उसने हाविनहाळ कल्लय्या के घर में
कुत्ते का जनम नहीं लिया क्या?
यही कारण कि शिवभक्तों के नैवेद्य से
बचे प्रसाद को लेना चाहिए
कहा हमारे शांत कूडल संगमदेव ने। / 2269 [1]

वीरण्णा के जीवनवृत्त का परिचय उपलब्ध नहीं। वे अपने को शिवगण का भृत्य कहलाने से 'गणदासी' विशेषण उनको अन्वर्थक लगता है। इनके 40 वचन प्राप्त हुए हैं। इनके वचनांकित 'शांतकूडलसंगम देव' है। 'ज्ञानसारायदा वचन' महाज्ञान के अनुभाव के वचन नामक शीर्षक में ज्ञान अनुभाव प्रधान रूप में है। 'अष्टावरण ही अंग, पंचाचार ही प्राण' मानने से इनके वचनों में दोनों तत्वों के विवेचन को महत्व दिया गया है। बसवादि शरणों के वचनों का प्रभाव इनके वचनों में विशेष रूप है।

शिवभक्त किसी भी नगर में रहने से क्या हुआ?
किसी भी बस्ती में रहने से क्या हुआ?
अछूत बस्ती में रहने से क्या हुआ?
जहाँ शिवभक्त है वही कैलास है।
उसका निवास शिव का राजप्रसाद है।
उसके निवास के आसपास का सारा लोक शिवलोक है।
साक्षी :-
‘चांडालवाटिकायां च शिवभक्त: स्थितो यदि।
अत्रापि शिवलोक: स्यात् तद्गृहम् शिवमंदिरम् ।।'
अतः ऐसे शिवभक्त के आँगन के दर्शन से
कोटि ब्रह्महत्या, कोटि शिशुहत्या पाप मिट जायेंगे।
उन्हें साष्टांग नमस्कार करनेवालों को
अष्टैश्वर्य अष्टमहासिद्धियाँ मिलेंगी।
उनके बचे प्रसाद लेने से
वे सचमुच सद्योन्मुक्त होंगे।
ऐसे शिवभक्त की क्या उपमा हूँ?
वह महादेव नहीं तो और कौन हो सकता है?
वह अगम्य अगोचर अप्रमाण आनंद महिम है।
ऐसे सद्भक्त के श्री चरण को मेरे अंतरंग में दर्शन करानेवाले हैं।
हमारे शांत कूडल संगमदेव । / 2270[1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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