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गावुदि माचय्या (1160)

पूर्ण नाम: गावुदि माचय्या
वचनांकित : कल्याण के त्रिपुरांतक लिंग में गावुदि माचय्या का कहना सत्य कहिए भैया

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जब अपनी देह ही अपने लिए बोझ बने तो
अब आप क्या उठा पाओगे?
अपने ज्ञान की बातें स्वयं भूल जाय तो
आखिर क्या ज्ञान पाओगे?
इस कारण, कल्याण के त्रिपुरांतक लिंग में
गाउदि माचण्या की बातों को सच मानिए। / 1659 [1]

ऐसा मालूम पड़ता है कि कल्याण शरणों के बीच अपनी शिवपूजा निष्ठा और प्राणलिंगानुसंधान में समय बिताते थे। 'कल्याण के त्रिपुरांतक लिंग में गावुदि माचय्या का कहना सत्य कहिए भैया' नामक अंकित में ११ वचन मिलते हैं। सत्यशुद्ध कायक से धन संग्रह करो, जितना आवश्यक है रख लो। शेष का गुरु लिंग जंगम को अर्पण करो। आशापाश में न पड़ो- यही उन वचनों का आशय है।

भक्त जब पैसे कमाते हैं।
उसे जहाँ वे रहते हैं गुरु-लिंग-जंगम को अर्पित कर देना चाहिए।
यही सद्भक्ति की रीत है।
खुद मिट जाने के बाद उस द्रव्य को अपने बच्चों के लिए चाहना
वही आचार का भंग होना है।
वह स्वामिद्रोही है।
इसे समझकर कल्याण के त्रिपुरांतक लिंग में
गाउदि माचव्या की बातें
सच मानिए भैया।। / 1660[1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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