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(गोणि) कंबल मारय्या (1600)

पूर्ण नाम: गोणि (कंबल) मारय्या
वचनांकित : केटेश्वर लिंग
कायक (काम): चरवाहा (Shepherd)

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खड्ग प्रहार से पार होने के बाद
धार की नोक लगी मूर्खा की बात नहीं सुनी जाती।
ज्ञानदीप्त मन में विस्मरण के लिये स्थान कहाँ?
निष्ठा में निष्ठा पैदा होने के बाद ।
निष्ठा का आचरण जुड़ता नहीं।
समस्त को नमस्कार करते घर-घर में भिक्षा स्वीकारते ।
सुप्रसन्न भाव के शरण को
कोई भ्रम उलझन नहीं
शरण आप बना स्वयं कोटेश्वरलिंग। | / 2276 [1]

इस वचनकार के जीवन के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। 'केटेश्वर लिंग' अंकित से इनके 9 वचन प्राप्त हुए हैं। उनमें दृष्टांत रूप में प्रयुक्त, गोणि, गोऊ, भिक्षा आदि पदों से ज्ञात होता है ये 'गोणि' (कंबल) ओढ़कर चरवाहा का काम करते थे। पता चलता है कि ये घर घर जाकर भीख माँगते थे। अधिकतर वचन उनके कायक की परिभाषा में आध्यात्मिक चिंतन प्रकट करते हैं।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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