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गोरक्ष (1160)

पूर्ण नाम: गोरक्ष
वचनांकित : गोरक्षपालक महाप्रभु सिद्ध सोमनाथ लिंग
कायक (काम): गायों की रक्षा

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आटे की पुतली से चित्र को करचरण आदि बना
घी के माधुर्य की सरसता से मिला कर ।
आग से तपाकर गलाने के बाद
दुबारा हाथ-पाँव के चित्र का स्वरूप कैसे रह सकता है?
यह निश्चय परवस्तु स्वरूप है।
वह मर्त्य की दृष्टि दृश्य के लिए निश्चित हुआ है।
एकलिंग के निष्ठावान के लिए यह नियम बना हुआ है।
आत्म लक्ष्य भी निर्लक्ष्य थी ।
गोरक्षपालक महाप्रभु सिद्ध सोमनाथ लिंग। / 1673 [1]

ये नाथ पंथ परंपरा में आनेवाले गोरक्ष थे। कई सिद्धियाँ पाकर वज्रकाय बने रहते हैं। अल्लमप्रभु वाद-प्रतिवाद में इसे हराकर, इष्टलिंग दीक्षा देकर शून्य संपादन का मार्ग दिखाते हैं। इसके बारे में शून्य संपादन, प्रभुलिंगलीला आदि कृतियों में परिचय मिलता है। गोरक्ष का जन्मस्थान ‘पट्टदकल्लु' है। वहाँ का राजा नरवर्मा की गायों की रक्षा का कायक करते थे। इनका ऐक्य स्थल श्रीशैल है। इनका वचनांकित है ‘गोरक्षपालक महाप्रभु सिद्ध सोमनाथ लिंग'। इनके 11 वचन उपलब्ध हैं। उनमें कई प्रकार की सिद्धि, ज्ञान, योग, आत्मविद्या आदि का विवरण मिलता है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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