Previous गुरुपुरद मल्लय्या (1400) गुहेश्वरय्या (लगभग 1600) Next

गुरुसिद्धदेव (17वीं शती)

पूर्ण नाम: गुरुसिद्धदेव
वचनांकित : संगन बसवेश्वर

*

अंग पर लिंग धारण कर
शिवभक्त कहलाते , तजकर शिवाचार का मार्ग
भवि और शैव दैवों को साष्टांग नमस्कार करते
‘शरणु' कहनेवाले अधमों का अंत हुआ शिवभक्त का जन्म
और उन्हें चंद्र-सूर्य के रहने तक अट्ठाईस कोटि नरक से बचाव नहीं।
उस नरक के अंत होने के बाद भी,
कुत्ते, सुअर के जन्म से वे नहीं बच सकते
उपरांत भी उस जनम के रुद्र प्रलय से वे नहीं बचते देखो,
संगनबसवेश्वर । / 2271 [1]

'चिदैश्वर्य चिदाभरण' नामक वचन संकलन के कृतिकार शांतमल्ल स्वामीजी के शिष्य थे। शांतमल्लस्वामी तोंटद सिद्धलिंग की शिष्य परंपरा में थे। बसवलिंगदेव के गुरु थे। इनका जन्मस्थान श्रीशैल के पास का नागरगवि था। वे नागरगवि सिंहासन के अधिपति थे। 'चिदैश्वर्य चिदाभरण' संकलन में अन्य शरण वचनों के साथ स्वयं गुरुसिद्ध देव ने भी अपने 101 वचनों को मिला लिया है। 'संगन बसवेश्वर' इस कवि का वचनांकित है। वचनों का मुख्य विषय तत्व निरूपण ही है और इनका उपदेश शिष्य को गुरुसिद्ध देव ने दिया था।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

सूची पर वापस

*
Previous गुरुपुरद मल्लय्या (1400) गुहेश्वरय्या (लगभग 1600) Next