गुरु वरद विरूपाक्ष (1600)
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पूर्ण नाम: |
गुरु वरद विरूपाक्ष |
धन-दौलत है, तो सभी पास आते हैं,
आग लगे तो कोई नहीं रुकता,
जल रहा है लोक, विष की आग में,
चल रही है दिशाओं में, सुरासुरों की टोली;
हरि-ब्रह्मा भी, लक्ष्मी, सरस्वती का हाथ पकड़कर
मोहित हुए, आपकी असलियत न जानते हुए।
संपत्ति भक्तों को देते हुए, आग रूपी विष को आपने धारण किया
तुम्हारे समान कौन है, हे गुरुवरद विरूपाक्षदेव! (2220) [1]
उपरोक्त वचनांकित के वचनकार का नाम अज्ञात है। एक वचन प्राप्त है। इसमें संपत्ति के महत्व को काव्यमय शैली में निरूपित किया गया है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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