पूर्ण नाम: |
गुरुपुरद मल्लय्या
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वचनांकित : |
गुरुपुरद मल्लय्या
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मेरा पाँव ही नींव का पत्थर बना
मेरे पैर ही खम्भे बने
मेरी बाहें ही नागवेदिका बनी
मेरी अस्थी ही चारों ओर की शहतीर बना
मेरे अधर भीतरी द्वार बने ।
मेरी गुरु करुणा ही लिंग बना
मेरा अंग ही रंगस्थली बना
मेरा हृदयकमल ही पूजा बना
मेरे कान ही कीर्तिमुख बने
मेरे स्मरण करती जीभ ही घण्टी बनी
मेरा सिर ही सुवर्णकलस बना
मेरे नेत्रही प्रज्ज्वलित ज्योति बने
मेरी त्वचा ही निर्मल ओढ़नी बनी।
मेरी स्मृति ही आपके लिए नैवेद्य बनी
गुरुपुर के मल्लय्या इस प्रकार है। / 1671 [1]
गुरुपुरद मल्लय्या ने अपने नाम को ही अंकित बनाकर रचा है। इनके जीवन के बारे में कोई भी विवरण उपलब्ध नहीं। चार वचन प्राप्त हुए हैं। मन की चंचलता, शिवभक्ति की भावना उनमें व्यक्त हुई है।
समय-समय पर बदलते मन को देखकर
प्रतिदिन बदलते शरीर को देखकर
उन उन दिनों घबराहट होने लगी है।
एक मिनट में अनंत का स्मरण ही करते मन को देख,
उन उन दिनों घबराहट होती है।
यह मन आपका स्मरण करने नहीं देता,
मन शत्रु बन गया है।
सद्गुरुपुरद मल्लय्या। / 1672
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References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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