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कदिर रेम्म‌व्वे (1160)

पूर्ण नाम: रेम्म‌व्वे, रेब्बव्वे
वचनांकित : कदिर रेम्मियोडेय गुम्मेश्वर
कायक (काम): चरखे से सूत कातना (Spinng)

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मेरे घूमते चरखे की जाति के बारे में सुनो भाई।
उसका पाटा ब्रह्म है, तोरण विष्णु है।
स्थिर रहा पुतला ही महारुद्र है।।
इस रुद्र के पीछे बंधे दो सूत्र कर्ण हैं।
ज्ञान रूपी तकली को भक्ति रूपी हाथ से घुमाने पर
सूत लपेटता गया और भर गयी तकली।
घुमा नहीं सकती अब चरखा - मेरा पति
नहीं घुमाने से मारेगा
अब क्या करूं; कदिर रेम्मियोडेय गुम्मेश्वर? / 1303 [1]

ये रेब्बव्वे भी कहलाती हैं। 'कवि चरित' के रचनाकार इन्हे कदिर रेमय्या की पत्नी होने का अनुमान लगाते हैं। चरखे से सूत कातना इनका कायक था। इनके केवल चार वचन मिले हैं। वचनांकित है 'कदिर रेम्मियोडेय गुम्मेश्वर' । दो वचनों में सती-पति भाव व्यक्त है तो, शेष एक में शरण स्तुति और दूसरे में कायक का महत्व व्यक्त हुआ है। इन चार वचनों में तीन उलटबासी हैं (बेडगिन वचन) तो एक वचन सरल भाव का है। उलटबासी के वचन के लिए सिंगळ के सिद्धबसवराज ने टीका लिखी है। वृत्ति परिभाषा इनके वचनों में सार्थक रूप में प्रयुक्त हुई है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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