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कलकेतय्या (1160)

पूर्ण नाम: कलकेतय्या
वचनांकित : मेखलेश्वर लिंग

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कायक किया तो मांगते क्यों हो?
नहीं देने पर निंदा क्यों करते हो?
स्वामी और भक्त के यहाँ कायक किया कह।
गली गलीच, खिड़की, मंदिर, के इधर-उधर ।
खड़े होकर राह क्यों देखते हो?
क्या वह गुण कायक के लिए शोभा देता है?
यह गुण पेट भरने वाले सांसारिक का गुण है।
ऐसे उभय भ्रष्ट को दिया गया द्रव्य
मेखलेश्वर लिंग को न पहुँच पाया। / 1620 [1]

'कलकेतय्या जैसे पिता है देखो मेरे लिए' कहकर बसवण्णा ने इनकी स्तुति की। ये लोकगीत कलाकार थे। 'कलकेत' एक लोककला है। उसका प्रदर्शन करना इनका कायक था। कवि हरिहर, पाल्कुरिके सोमनाथ, भीमकवि और लक्कण्णा दंडेश के काव्यों में इनकी कथा वर्णित है। 'मेखलेश्वर लिंग' अंकित में रचे 11 वचन प्राप्त हैं। तत्व, उलटबासी और अनुभाव तीनों का संगम इनकी रचना में हुआ है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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