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करुळ (आंतों) केतय्या (1160)

पूर्ण नाम: करुळ (आंतों) केतय्या
वचनांकित : शंकेश्वर

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यह जानने के बाद कि
मृत्यु से कभी छुटकारा नहीं,
व्रतभंग होकर रोज़-रोज़ क्यों मरते हो?
निन्दित होने से पहले ही
लिंग में लगाकर चित्त को
निजलिंग तक पहुँचाकर
मन से मनोहर शंकेश्वर लिंग में मिल जाइए। / 1618 [1]

व्रताचार में निष्ठा रखनेवाले इस शरण के बारे में कुछ भी पता नहीं। 'शंकेश्वर' वचनांकित में इसके 8 वचन मिले हैं। उनमें भवि का स्पर्श नहीं करना, अनर्पित को स्वीकार न करना' आदि व्रतनिष्ठा और व्रत चूके तो देह त्यागनेवाले को पसंद करनेवाले दैव न चाहिए' कहनेवाले ढांबिक व्रताचारी की निंदा विशेष रूप में हुई

जो अपना नहीं, उसे शरीर स्पर्श करता है तो
उसे वहीं पर काट दूँगा।
जो अपना नहीं, उसे हाथ के छूने पर उसे वहीं काट दूँगा।
जो अपना नहीं, उसे यदि कान सुनता है।
उसे वहीं बँटा जड़ दूँगा।
जो अपना नहीं, उसे नासिका के घ्राण करने पर
उसको मैं वहीं दबा दूँगा।
दृष्टि स्वयं गलती से देखने लगी तो
उसे मैं वहीं उखाड़ दूँगा।
चित्त गलती से कुछ और का ध्यान करने लगा तो
आत्मा को वहीं काट डालूँगा
इसके लिए आप ही साक्षी हैं।
मन के मनोहर शंकेश्वर लिंग। / 1619 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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