पूर्ण नाम: |
कीलारद भीमण्णा
|
वचनांकित : |
कर्महर त्रिपुरांतकलिंग
|
कायक (काम): |
पशुपालन (Herding)
|
*
कपूर के दिये में बाती डालकर जलाना क्या ठीक होगा?
ज्वाला के पास खड़े होकर बुझ जाय इस आशंका से
हरि घास-पूस डालकर जलाना क्या ठीक होगा?
धार तेज़ होने से अपना बदन चीरकर
धार को सुललित कहना क्या ठीक होगा?
वह गुण उन-उन स्थानों पर ठीक है।
यह निश्चय है, निज लिंगांगी का, ज्ञान का रहस्य है।
काल-कर्म रहित त्रिपुरांतक लिंग का ज्ञान
प्राप्त व्यक्ति की रीति है। / 1624 [1]
भीमण्णा ने पशुपालन वृत्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। 'कर्महर त्रिपुरांतकलिंग' वचनांकित से रचे दस वचनों में उनके वृत्ति-संबंधी विवरण मिलते हैं।
व्याध की तरह, मछुआरे की तरह, स्वर्ण चोर की तरह।
इस प्रकार के धोखेबाज़, चोरों की तरह
बातों में ब्रह्मज्ञान की बात करते हुए
सभी पारिवारिक कार्यों में डूबे रहते
जलते-तड़पते हुए जो हैं वे फिर
ब्रह्म सुखी कैसे बन पाएँगे?
इस तरह बोलना नहीं चाहिए,
आचरण नहीं छोड़ना चाहिए,
क्रिया को समझकर ज्ञान को नहीं भूलना चाहिए।
इस प्रकार भेद को समझकर चले बिना।
काल-कर्म रहित त्रिपुरांतक लिंग नहीं प्राप्त होगा। / 1625 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
*