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मडिवाळप्पा (18वीं शती के)

पूर्ण नाम: कडकोळ के मडिवाळप्पा
वचनांकित : निजगुरु भोगेश्वर

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मेरे पाँव, मेरे हाथ, मेरी आँखें, मेरी नाक
मेरा मुँह, मेरी देह, मेरा मन, मेरे प्राण
इत्यादि समस्त ‘अपने हैं, ऐसा कहलाने वाला वह कौन है?
कौन है देखो वही जो अपने आप हुआ
निरूपम निराळ महाप्रभु महांतयोगी। / 2464 [1]

‘कडकोळ के मडिवाळप्पा' नाम से प्रसिद्ध ये बड़े अनुभावी थे। ये गुल्बर्गा जिला अफजलपुर तालूक बिदनूर के थे। पिता का नाम विरूपाक्षस्वामी था और माँ का नाम गंगम्मा । कलकेरी मरुळाराध्य दीक्षगुरु थे। कडकोळ गाँव ही मडिवाळप्पा की कर्मभूमि थी। वहीं पर वे जीवंत समाधिस्त हुए।

मडिवाळप्पा से रचित साहित्य स्वरवचन (तत्वपद) और वचन नामक दो रूपों में मिलता है। लगभग 500 से अधिक स्वरवचन और 23 वचन उपलब्ध हुए हैं। स्वरवचन में ‘गुरु महांत' अंकित हो तो वचनों में निरूपम निराळ महाप्रभु महांतयोगी' अंकित है।

स्वरवचन (गेयपद तत्वपद) मुक्तक रूप में मिले हैं तो वचन ‘निजलीलामृत वचन' शीर्षक में कृतिरूप में मिले हैं। यह स्थलों के समूह की कृति है और इसमें 20 स्थल हैं। 23 वचनों के साथ 5 स्वरवचनों को मिला दिया गया है। लिंगायत षट्स्थल तत्व निरूपण ही इस कृति का मुख्य लक्ष्य है। साथ ही समाज की आलोचना भी इधर उधर दिखाई पड़ती है।

जो मिला है उसका तिरस्कार न करते हुए,
जो नहीं मिला है उसे न चाहते हुए।
षड्रस की रुचि सेवन करते हुए।
चिंता नष्ट होकर संतोष में रहने वाले को
आनंद और शत्रु एक ही रीति में स्वीकार कराने से मन उजाला होगा
विराग ही स्वास्थ्य न होकर, भवरोग की पीड़ा के लिए आधार बनकर
अनंत काल, अनंत जन्म मरता रहेगा
हे निरुपम, निराळ महाप्रभु महांतयोगी । / 2465 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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