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मरुळशंकरदेव (1160)

पूर्ण नाम: मरुळशंकरदेव
वचनांकित : शुद्ध सिद्ध प्रसिद्ध प्रसन्न प्रभु शांतचेन्नमल्लिकार्जुन

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संसार रूपी सागर पार करने के लिए
विवेक रूपी नौका में
ज्ञान रूपी केवट बैठकर
सुज्ञान रूपी डंडा पकड़े हुए।
इस नदी को देख केवट से पूछने पर।
उसने कहा मैं पार कराऊँगा।
मैं तुझ पर विश्वास करके नाव पर चढ़ा बैठा, केवट।
मैं नाव पर चढ़कर बैठा नदी पार जाने के लिए
काम रूपी बँट ने बीच में रुकावट डाला था।
क्रोध रूपी भंवर में ।
अहंकार रूपी मछली आकर खड़ी थी।
माया रूपी मगरमच्छ मुँह खोल रहा था।
मोह रूपी फेन तरंगें उठ रही थीं।
लोभ रूपी काला सागर खींच ले जाता था।
विस्मृति रूपी गर्जना धकेलती थी
मत्सररूपी वायु उलटा सीधा करता था।
इन सब को निभाते हुए।
मुझे केवट ने नदी पार कराया।
इस नदी को पार करानेवाले केवट ने मुझसे मजूरी माँगी तो
मजूरी देने के लिये कुछ नहीं कहने से ।
हथकड़ी से बंधी बनाते खींच ले गया,
मजूरी में गाय चरवा लिया,
अनजान में नाव में लहरों से भरी नदी पार कराने की मजूरी रूप में
गाय चरवा लिया।
हे शुद्ध सिद्ध प्रसिद्ध प्रसन्न प्रभु
शांत चेन्नमल्लिकार्जुन देवय्या
आपका धर्म, आपका धर्म, आपका धर्म है। / 1926 [1]

शरणों का यशोगान सुनकर आफघानिस्थान से कल्याण आये। बसवण्णा के घर ‘महामने' में गुप्त भक्त के रूप में 12 साल रहे। इन्हें अल्लमप्रभु ने पहचाना और शरणों को परिचय कराया। शून्य संपादन में इसका उल्लेख हुआ है।

प्रसादि स्थल में मरुळशंकर देव के ‘शुद्ध सिद्ध प्रसिद्ध प्रसन्न प्रभु शांतचेन्नमल्लिकार्जुन' वचनांकित में रचे 35 वचन मिले हैं। उनमें उनके व्यक्ति वैशिष्ट से युक्त प्रसाद तत्व का प्रतिपादन हुआ है। साथ ही बसवण्णा आदि शरणों की स्तुति लिंगवंतों की धारणा, महालिंगैक्य का स्वरूप, शील, चारित्र्यों का बोध आदि भी प्रतिपादित हैं। शरणों का ‘शरण सती-लिंगपति' भाव इनमें ‘शरणपतिलिंगसती' भाव के रूप में सूफी प्रभाव से बदला है।

सामान्य स्त्री में रंभा का स्वभाव रहता है क्या?
संभ्रम समाप्त होने पर नवरस के अंग का सौंदर्य है क्या?
सेवक में समयाचार का संभ्रम थोडा ही कहते हैं।
स्पर्शमणि के प्रभाव से पत्थर अपना गुण त्याग ने जैसे आप आये
हे शुद्ध सिद्ध प्रसिद्ध प्रसन्न प्रभु
शांत चेन्नमल्लिकार्जुनदेवय्या
प्रभुदेव की कृपा से मैं धन्य हुआ। / 1927 [1]

हिमशिला पिघले बिना फटता है क्या?
सोने का रंग आग की ज्वाला से डरेगा क्या?
कालाधीन की टंकसाल में विशाल संपत्तिवाले को इच्छा रहेगी क्या ?
इन्हें न जानते हुए बालिश की बातें क्यों
गुडिया गुम्मट के स्वामी अगम्येश्वर लिंग? / 1924[1]

मार्ग दिखाने वाले सब
मार्ग भय को निर्भय कर सकते हैं क्या?
वेद शास्त्र पुराण आगमों को कहने वाले सब
निजतत्व को जान सकते हैं क्या ?
कायर का शृंगार, सूर्य ताप का काठिन्य।
ज्ञानहीन का संग, ऐसे लोगों के व्यर्थ अशाश्वत को जानो।
गुड़िया गुम्मटनाथ के स्वामी अगम्येश्वर लिंग में
पूर्णरूप में ऐक्य हो जाओ। / 1925 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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