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मेरेमिंडय्या (1160)

पूर्ण नाम: मेरेमिंडय्या
वचनांकित : ऐघटदूर रामेश्वरलिंग

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अंग में रहकर हाथ में आए।
हाथ से मन में क्यों न आते हो?
मेरा गाना तुमने सुना तो, मुँह, कान क्या दुःखे नहीं, देव?
तुम्हारे अंत का दिन नहीं है, मेरे बचने के दिन नहीं।
तुम्हारा अंग नहीं मिटता, मेरा मन नहीं रुकता,
क्रिया रूपी दलदल में फंसकर,
उभरना न जानते हुए, तड़पता हूँ।
पंचभूतात्मक देह को मुक्ति का मार्ग बताओ,
ऐघटदूर रामेश्वर लिंगदेव! / 1941 [1]

‘मेरेमिंडदेव' नामक तमिलनाडु के 63 पुरातन शरणों में जो थे उनसे ये भिन्न हैं। ये बसवेश्वर के समकालीन शरण थे। इनका वचनांकित है - ‘ऐघटदूर रामेश्वरलिंग'। इनके 110 वचन उपलब्ध हुए हैं। वचनों में अष्टावरण, लिंगांग सामरस्य आदि तात्विक विषय और सामाजिक व्यंग्य सरल शैली में निरूपित है। उन्होंने कई शरणों का ससम्मान स्मरण किया है।

सुवर्ण अमूल्य, मिट्टी को तुच्छ कहना चाहिए क्या?
सोना पिघलने के लिए, मिट्टी का पात्र आधार बना था
इष्टलिंग जानने के लिए परवस्तु प्राप्त करने के लिए यही दृष्टांत है,
ऐघटदूर रामेश्वरलिंग को जानने के लिए। / 1947 [1]

अपने आपको समझने पर,
अपना ज्ञान ही गूरु है, स्वयं है इष्टलिंग,
अपनी निष्ठा ही है जंगम,
इन तीनों का सम्मिलन हो तो,
ऐघटदूर रामेश्वरलिंग स्वयं है। / 1948 [1]

अपने पराये होते हैं -
जब नारी, सोना, मिट्टी के लिए लड़ते हैं,
इन तीनों को छोड़ दो तो पराये अपने हो जाते हैं,
ज्ञानी हो या संसारी हो,
चाह ही एक भेद है, इन दोनों से दूर रहो -
ऐघटदूर रामेश्वरलिंग को जानने के लिए। / 1949 [1]

फल, जैसे, रस को छिपा रखता है,
भूमि, जैसे, धन को छिपा रखती है,
माता, अपने गर्भ में छिपाकर, शिशु का पालन करती है,
उसी प्रकार तुम, चिह्नरूप में छिपे रहते हो,
ज्ञान पानेवाली आत्मा में छिपा रखते हो, ज्ञान प्राप्ति के लिए,
चिह्न की मूर्ति में, अंग को भूलकर, ईश्वर को छिपाना नहीं,
ऐघटदूर रामेश्वरलिंग को जानने के लिए। / 1955 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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