पूर्ण नाम: |
मुम्मडि कारयेंद्र
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वचनांकित : |
महाघन दोड्ड देशिकार्य गुरु प्रभु
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बीज के भीतर का वृक्ष फल का स्वाद ले सकता है क्या?
बिन्दु में रहती हुई सती से संग भोग घटित होता है क्या?
बारीश की बूंदों में स्थित लाल रंग के मोतियों का
हार बनाकर गले में धारण कर सकते हैं क्या?
क्षीरांतर्गत घी ढूँढने से मिलेगा क्या?
ईख के भीतर का गुड़ आँख को दिखेगा क्या?
अपने में स्थित शिवतत्त्व का स्मरण करते ही
अनुभव कर सकते हैं क्या?
मन में धारण करते, जानते, मंथन से प्रयोगों से प्रसन्न करके
उस अनुभव के सुख में आनन्दित रहना
अति चतुर शिवशरण के बिना दूसरों से होगा क्या
महाघन दोड्ड देशीकार्य गुरु प्रभु ? / 2466
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मास्ति वंश के इम्मडि कायेंद्र इनके पिता थे। माँ का नाम कुप्पमांबे था। दोड्ड देशिकार्य इनके गुरु थे। ये अपने को ‘मुम्मडि कार्य क्षितींद्र' कहलाते हैं, तो लगता है ये राजा रहे होंगे। मैसूर जिला नंजनगुड तालुक ‘कार्य' ग्राम में राजा रहे होंगे।
कारयेंद्र की कृत्ति है ‘वेद संजीविनि'। इसमें 11 अध्याय हैं और 125 वचन हैं। इनका वचनांकित है ‘महाघन दोड्ड देशिकार्य गुरु प्रभु' । वचनकार बताते हैं कि गुरु ने सपने में आकर ‘जीवों का पाप निवारण हो ऐसा परतत्व वचन रचो' कहा। यह शुद्ध तात्विक कृति है। इस कृति का आशय यह बताना है कि लिंगायत तत्व वेद से भी बढ़कर है। यह वेद के लिए संजीविनी के रूप में है।
भक्तिरूपी दूध को मन में जामन कर
उससे मिले कड़े दही को
शरीर रूपी घड़े में भरकर
तत्त्व रूपी मथनी से मंथन करने से ।
लिंग रूपी मक्खन मिलने पर, उसे स्वीकार कर
ज्ञानाग्नि में पकाने पर
निजवासना से प्रकाशित घी के सेवन के बल से
आत्म ही लिंग बना देखो
महाघन दोड्ड देशीकार्य गुरु प्रभु। / 2467 [1]
जहाँ दिन रहेगा वहाँ अंधेरा रहेगा क्या?
जहाँ अंधेरा रहेगा वहाँ दिन रहेगा क्या?
जहाँ जागृति हो वहाँ स्वप्न रहेगा क्या?
जहाँ दुःख हो वहाँ आनंद रहेगा क्या?
तुम प्रसन्न हो जाओ तो मैं रह सकता हूँ क्या?
मैं प्रसन्न हो जाऊँ तो तुम रहोगे क्या?
जहाँ तुम हो वहाँ मैं नहीं, जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं
महाघन दोड्ड देशीकार्य गुरु प्रभु। / 2468 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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