मेरे तन का वह अपने तन से, आलिंगन किया माई,
मेरे मन का, वह अपने मन से, आलिंगन किया माई,
मेरे ज्ञान को, अपने ज्ञान से, स्वीकार किया माई,
इसके बाद, मेरा सब कुछ, उसके निमित्त,
उसका सबकुछ, मेरे निमित्त,
मैं डूबा, वह रहा, वह डूबा मैं रहा
इस मिलन के निज सुख के, आनंद को क्या कहूँ?
हे, परम गुरु नंबुंड शिव।। (2227) [1]
वचनकारका नाम ज्ञात नहीं। 'नंजुडशिव' वचनांकित के 24 वचन और 5 स्वरवचन लभ्य हैं। अधिकतर वचन लंबे हैं। संस्कृत उल्लेखों से भरे हैं। इनमें वचन तत्व प्रधान है।
देखा मैंने, अविरल को आँखों में
देखा मैंने, अपार को त्वचा में,
देखा मैंने, उपमातीत को श्रोतृ में,
देखा मैंने, वाक्मन के लिए, अगोचर को घ्राण में,
देखा मैंने, अनघ अतयं को जिह्वा में,
देखा मैंने, एकमेवाद्वितीय को हृत्कमल में
हमारे, परम गुरु नंबुंड शिव को। (2228) [1]
वेदशास्त्रागम, तर्क, तंत्र, इतिहास,
विविध पुराण, पुरातन शरणों के वचनों को सीखने से भी क्या ?
गुरु में विश्वास नहीं करते, इष्टलिंग में निष्ठा नहीं रखते,
जंगम में, सावधानी नहीं, प्रसाद में परिणामी नहीं,
पादोदक में परमानंदी नहीं,
इस पंचाचार को जानकर, स्वयं विलीन होकर
जीने का रहस्य न जानते हुए,
‘मैं भक्त हूँ, मैं विरक्त हूँ' कहने पर, हँसेंगे नहीं क्या आपके शरण?
हे, परमगुरु नंबुंड शिव! (2229) [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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