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प्रसादि लेंक बंकण्णा (1160)

पूर्ण नाम: प्रसादि लेंक बंकण्णा
वचनांकित : दहन चंडिकेश्वरलिंग

प्रसाद ही जिसका अंग बना है उसका अस्तित्व इस प्रकार कि
अभी न सूखे घड़े के कूटकर दो दूकड़े हो जाने जैसे
मरीचिका जल भरकर, डालने के अंग के समान होना चाहिए ।
ज्वाला के बीच विनष्ट कपुर के पहाड़ की तरह होना चाहिए।
महा प्रसाद ले जाने पर सामने विरोध न हो ऐसा होना चाहिए।
व्याप्ति नष्ट होकर दहन चंण्डिकेश्वर लिंग में विलीन होना चाहिए। /१८३० [1]

प्रसादि लेंक बंकण्णा (1160) बंकण्णा नाम के कई शिवशरण हुए हैं। उनमें कौन ये हैं पता नहीं। इनके जीवन का कोई विवरण प्राप्त नहीं। प्रसादियों की सेवा करना ही अपना कायक समझकर चले हैं। अत: इनके वचनों में अर्पित-अनर्पित प्रसाद, कायक आदि का तात्विक विवेचन अधिकतर हुआ है। 11 वचनमिले हैं। इनका वचनांकित है ‘दहन चंडिकेश्वरलिंग' |

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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