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सकळेश मादरस (1130)

पूर्ण नाम: सकळेश मादरस
वचनांकित : सकळेश्वरदेव
कायक (काम): राजा, कल्याण आये और शरण बने

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अशन व्यसनी हैं अनंतानंत,
काशांबरधारी भी हैं अनंतानंत,
हे सकळेश्वर देव,
तुम्हारे अलावा, दूसरे को न समझनेवाले तो हैं लाखों में एक! / 2057 [1]

बसवेश्वर के वरिष्ठ समकालीन मादरस कल्लुकुरिके के राजा थे। इनके पिता का नाम था मल्लिकार्जुन। आगे जो केरेय पद्मरस, कुमार पद्मरस, पद्मणांक हुए वे इन्हीं के वंशज भक्तकवि थे। ये विरागी होकर कल्याण आये और शरण बने। कल्याण क्रांति के बाद श्रीशैल जाकर वहीं पर वे लिंगैक्य हुए। मादरस श्रेष्ठ संगीतज्ञ थे। वे वीणा आदि अनेक वाद्यों को बजाते थे। 'सकळेश्वरदेव' वचनांकित में रचे इनके 133 वचन मिले हैं। उनमें आत्म-निरीक्षण, शिवभक्ति की तीव्रता, प्रसाद का महत्व, नीतिबोध, आचार निष्ठा, समाज की आलोचना आदि अभिव्यक्त हैं। कई वचनों में व्यक्तिगत जीवन के अंश, संगीत संबंधी उल्लेख होने से उनको चारित्रिक महत्व प्राप्त होता है।

किसी को न चाहकर, जंगल में जाना,
सुकार्य नहीं, दुष्टता है,
गाँव में रहें, तो लोगों का ऋण
वन में रहो तो तरुओं का ऋण
जो भी मिले, उसे लिंगार्पित कर, स्वीकारनेवाला,
शरण ही बुद्धिमान है, सकळेश्वरदेव ! / 2058 [1]

आशावान से कोई छोटे नहीं होते,
आशारहित से कोई बड़े नहीं होते,
दया के बिना धर्म नहीं है,
सुविचारों के बिना सहायक नहीं है,
सचराचर के लिए सकळेश्वर बिना अन्य दैव नहीं है। / 2059 [1]

सामने ही मेरी निंदा करनेवाले, मेरी बुद्धि चमकाते हैं,
मन का कालिख दूर करते हैं, सगे संबंधी,
दुराचारी आईना है मेरे लिए।
गलतियाँ दिखाते हैं,
इस कारण, मैं दूसरे देश नहीं जाऊँगा,
सकळेश्वरदेव के दर्शन देनेवाले यहीं होंगे! / 2060 [1]

ईश्वर से परे कोई बड़े नहीं।
आशा से परे कोई छोटा नहीं
दशा से परे कोई दिशा नहीं,
जप से परे कोई पुण्य नहीं,
सचराचर के स्वामी सकळेश्वर देव,
सुविचार से परे कोई सहायक नहीं। / 2061 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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