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शंकरदासिमय्या (1130)

पूर्ण नाम: शंकरदासिमय्या
वचनांकित : निजगुरु शंकरदेव

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हिरन यति जैसे, कौआ, पिक जैसे रहना चाहिए न?
वैसा न रहकर घूम कर अस्थिरता से थकते रहनेवाले
नीच लोगों का गंदा व्यवहार देखो!
दिन-रात घूमनेवालों को देख असह्य लगा।
जानो तो शरण, भूलो तो मानव,
गंदी वस्तु लेकर गाँव-गाँव घूमकर बेचनेवाले
काशांबरधारी को नहीं मानेगा, निजगुरु शंकरदेव। / 2030 [1]

शंकर दासिमय्या की जीवनी का निरूपण ‘शंकर दासिमय्या रगळे', ‘शंकर दासिमय्या पुराण’, ‘बसव पुराण', 'चेन्नबसव पुराण' आदि काव्य-पुराणों में हुआ है। ये शरण मूलतः ब्राह्मण थे। ये बागलकोटे जिला हुनगुंद तालूक स्कंदशिला (कंदगल्लु) के रहनेवाले थे। नविले के जडेय शंकरलिंग इनका आराध्य दैव था। पत्नी का नाम था शिवदासी। इनके चारित्र में शिव से आँखें पाने की बात, कल्याण में विष्णु की मूर्ति के दहन का प्रसंग और मुदनूर के जेडर दासिमय्या के अहंकार निरसन करने का प्रसंग आदि मिलते हैं। ‘निजगुरु शंकरदेव' वचनांकित में रचे 5 वचन उपलब्ध हैं। उनमें बसवादि शरणों की स्तुति, बसवावतार का कारण, कायामाया संबंध, ढोंगिवेषधारियों की आलोचना आदि यहाँ सीधी बोली में अभिव्यक्त हैं।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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