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शिवलेक मंचण्णा (1160)

पूर्ण नाम: शिवलेक मंचण्णा
वचनांकित : ईशान्य मूर्ति मल्लिकार्जुन लिंग
कायक (काम): पंडित

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कायक में देह को दण्डित न करते हुए।
शरीर को न थकाकर, मन को न तड़पाकर,
आग्रहपूर्वक माँगना और करना ‘दासोह' कैसे कहे?
जिस कायक के द्वारा, प्राण और धन को महत्व न देते हुए।
चित्तशुद्धि से, गुरु जंगम को तृप्त करने में सफल हो,
ऐसे लिंगदेहियों को, एकसमान, समर्पित हो, तो
ईशान्यमूर्ति, मल्लिकार्जुनलिंग संतृप्त होता है। / 2033 [1]

ये काशी के पंडित परंपरा के थे। कल्याण आकर शरण बने। इनके ही शिष्य थे उरिलिंगदेव । ‘ईशान्य मूर्ति मल्लिकार्जुन लिंग' वचनांकित में रचे इनके 132 वचन मिले हैं। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि ये परवादियों को शास्त्रार्थ में हराते शिवाधिक्य का यश पाते कई जगहों में भ्रमण करते थे। अष्टावरण, षस्थल, व्रताचार आदि का निरूपण इनके वचनों में व्यापक रूप में हुआ है। साथ ही डांभिक गुरुओं की आलोचना और कायक दासोह का विवरण भी मिलता है।

परधन स्वीकार नहीं करना ही व्रत है,
परस्त्री का संग नहीं करना ही शील है,
जीवियों को न मारना ही व्रत-नियम है,
तथ्य-मिथ्या से दूर रहना ही नित्यनियम है,
यह, ईशान्यमूर्ति मल्लिकार्जुनलिंग में संदेह रहित व्रत है। / 2039[1]

रसास्वादन जानने के लिए, जिह्वा बनकर आए तुम,
गंध जानने के लिए, नासिका बनकर आए तुम,
रूप जानने के लिए, अक्षी बनकर आए तुम,
शब्द जानने के लिए, श्रोत्र बनकर आए तुम,
स्पर्श जानने के लिए, त्वक् बनकर आए तुम,
इसप्रकार इस शरीर में, स्थित पंच मुख बन गये न, तुम,
हे ईशान्यमूर्ति मल्लिकार्जुनलिंग! / 2040 [1]

व्याध की एकाग्रता जैसे, नट की छलांग जैसे,
बॉबी में जानेवाले सॉप के जैसे,
पहनने, घारण करने में, देने-लेने में,
लिंगदेव में एक होना चाहिए,
ईशान्यमूर्ति मल्लिकार्जुनलिंग में समरस होना चाहिए। / 2041 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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