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स्वतंत्रसिद्धलिंगेश्वर (16वीं शती उत्तरार्द्ध)

पूर्ण नाम: स्वतंत्रसिद्धलिंगेश्वर
वचनांकित : निजगुरु स्वतंत्र सिद्धलिंगेश्वर

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अंधे के सामने तरह-तरह के नृत्य करने से क्या हो ?
देखकर खुश होगा क्या भैय्या?
बहरे के सामने संगीत-साहित्य से क्या हो ?
सुनकर, समझकर संतोष क्या?
ज्ञानानुभवविहीन बहुत कुछ पढ़ने, सुनने से भी क्या हो?
निजगुरु स्वतंत्र सिद्धलिंगेश्वर का ज्ञान जिनको न हो,
उनका पढ़ना और सुनना ।
बहरे, अंधों के श्रवण और दृश्य के बराबर था। / 2384 [1]

आप तोंटद सिद्धलिंगेश्वर की शिष्य परंपरा के प्रसिद्ध वचनकार हैं। आप मंड्य जिला कृष्णराजपेटे तालुक कापनहळ्ळि के थे। कापनहळ्ळि के समिप ’गजराजगिरि’ में आप शिवयोग साधन करते थे और वहीं पर लिंगैक्य हुए। निजगुरु स्वतंत्र सिद्धेश्वर’ वचनांकित में आपके ४३० वचन उपलभ्द हुए हैं। आपने ’जंगम रगळे’, ’मुक्तागना कंठमाला’ कृतीयां भी रची हैं छ: स्थलों में विस्तृत आपके वचनों में षट्स्थल तत्व निरूपण ही मुख्य वस्तु है। परंपरागत रीति से क्रमानुसार तत्व प्रतिपादन किया गया है।

संसार रूपी विषवृक्ष के पंचेन्द्रिय रूपी डालियाँ हैं,
पंचक्लेश ही फल हैं, पंचविषय ही रस हैं।
इस फल को चाहकर खानेवाले सब मरे।
उसे जानकर उसको मैं न छुऊँगा देखो
निजगुरु स्वतंत्र सिद्धलिंगेश्वर। / 2415 [1]

स्फटिक घट जैसे अंतरंग-बहिरंग एक ही है देखो
शरण के अंतरंग और बहिरंग सर्वथा अलग हैं।
ऐसा कह सकते हैं क्या?
तप्त लोहे के घनत्व जैसे शरण के सर्वांग
लिंग से आवृत होकर लिंग होने के कारण
हे निजगुरु स्वतंत्र सिद्धलिंगेश्वर,
आपके शरण लिंगसंगी ही हो
उसे अंगसंगी नहीं समझना चाहिए। / 2416 [1]

सँपेरा, साँप का खेल दिखाते वक्त अपनी रक्षा करते
साँप से खेलने जैसे
कुछ भी बोले, सतर्क होकर बोलना चाहिए,
अपना ही अपना शत्रु होने के कारण
निंदा करने वालों से हानि की बात न कहना,
निजगुरु स्वतंत्र सिद्धलिंगेश्वर, शत्रुता, मित्रता,
अपनी ही बात के सिवा कोई और नहीं है। / 2417 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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