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तुरुगाहिरामण्णा (1160)

पूर्ण नाम: तुरुगाहिरामण्णा
वचनांकित : गोपतिनाथ विश्वेश्वरलिंग
कायक (काम): गाय चराने का कायक

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एक लाठी से कई गौओं को रोकने जैसे
एक चित्त होकर सभी विकारों को रोकना चाहिए
इंद्रियभाव से गुरु लिंग जंगम को रोकनेवालों के पास न जाकर
पर वस्तु के अंग में ही अपने अंग को तल्लीन बना रहना ही
गोपतिनाथ विश्वेश्वरलिंग को समझने का यही मार्ग है। / 1790 [1]

रामण्णा शिवभक्तों के घर की गाय चराने का कायक करते थे। 'गोपतिनाथ विश्वेश्वरलिंग' वचनांकित में रचित इनके 46 वचन उपलब्ध हैं। अपने वृत्ति संबंधी अनुभव का आध्यात्मिक अनुभव के साथ समीकरण कर जो बताया है वह बड़ा अर्थपूर्ण है। कुछ उलटबासी-वचनों में तात्विक विवेचन मिलता है। कल्याण क्रांति के बाद बसवण्णा, चेन्नबसवण्णा, प्रभुदेव, अक्कमहादेवी आदि अन्य शरण कहाँ जाकर ऐक्य हुए इसकी जानकारी देनेवाला वचन एक ऐतिहासिक महत्व रखता है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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