उळियुमेश्वर चिक्कण्णा (१२७९)
|
|
पूर्ण नाम: |
उळियुमेश्वर चिक्कण्णा |
वचनांकित : |
उळियुमेश्वर |
यदी मैं कहूँ की
मैं भक्त हूँ मैं शरण हूँ, लिंग समरसी हूँ
यो लिंग हंसेगा नहीं क्या?
पंचेंद्रिय नहीं हँसेंगे क्या?
अरिषड् वर्ग नहीं हँसेंगे क्या?
मेरे तन के भीतर स्थित
सत्य, रज, तमो गुण न हँसेंगे क्या?
कहो उळियुमेश्वरा? / १५९२ (1592) [1]
अपने मन को पलंग बनाकर
तन को उसपर ओढाऊँगा, आओ।
मेरे अंतरंग में रहने आओ
मेरे बहिरंग में रहने आओ
हे मेरे शिवलिंग देव आओ
हे मेरे भक्तवत्सल आओ
’ओं नम: शिवाय’ कह बुलाता हूँ
हे उळियुमेश्वर लिंग, आओ। / १५९३ (1593) [1]
उळियुमेश्वर चिक्कण्णा (१२७९) चिक्कण्णा रायचूर जिला, सिंधनूर तालूक देवरगुडि गांव के रहनेवाले थे। वहां के अधिदेवता उळियुमेश्वर अर्थात् आज का ’मल्लिकार्जुन’ इनका अधिदैव है। कल्लेदेवरपुर शिलालेख (१२७९) में जो ’चिक्क’ शब्द प्रयुक्त है वह इसी चिक्कण्णा का नाम ही होगा। देवरगुडि शिलालेखों से पता चलता है कि ये मूलत: काळामुख शैवाचार्य थे। ’उळियुमेश्वर’ वचनांकित में लिखे १२ वचन मिले हैं। संसारहेय, शरण-स्तुति, निर्वाण की चाह भृत्यभाव, उदारदृष्टि आदि इनमें दिखाई पढनेवाली मुख्य विषयवस्तु हैं।
वारणासि, अविमुक्त क्षेत्र यहीं पर है,
हिमवत्केदार, विरूपाक्ष यहीं पर है,
गोकर्ण, सेतु रामेश्वर यहीं पर है,
श्रीशैल का मल्लिकार्जुन यहीं पर है,
सकल लोक पुण्यक्षेत्र यहीं पर है,
सकल लिंग उळियुमेश्वरा अपने में है। /1595 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
*