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उरिलिंगपेद्दि (११६०)

पूर्ण नाम: उरिलिंगपेद्दि
वचनांकित : उरिलिंगपेद्दिप्रिय विश्वेश्वरा
कायक (व्यवसाय): विद्वान (पंडित), अनुभावी

सभी लोगों को अमृत हुए बिना
किसी को अमृत किसी को विष नहीं लगेगा।
इसी प्रकार श्रीगुरु को सब के लिए गुरु होना चाहिए
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। / १५४३ (1543) [1]

ब्रह्मा, विष्णु आदि देव दानव मानवों को
लोभ ने पीड़ा देकर सताया था।
पवित्र व्रत-नियम, गुरुत्व के अनुसरण करनेवालों को भी
भ्रष्ट करके, उन्हे महत्व न देकर, हँसी का शिकार बनाया था।
इन सामथ्र्यवान पुरुषों को कष्ट देकर हराकर
आपको स्वयं विजय पाने का लोभ, यह कैसा?
इसपर विचार करने पर
शिव संबंधी, लोभ में आसक्त हो तो
शिव की आज्ञा लोभी को सताती है
शिव जिसपर प्रसन्न हो उन्हे, लोभ नहीं सताता है
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। /1573 [1]

उरिलिंगपेद्दि (११६०) मूलत: चोर वृत्तिवाले थे। इन्होने उरिलिंगदेव का शिष्यत्व पाकर बडा विद्वान, अनुभावी होकर श्रेष्ठ वचनों की रचना की है। काळव्वे इनकी पत्नी हैं। उरिलिंगदेव के बाद उस मठ के अधिपति बने पेद्दण्णा। जाति से अस्पृश्य थे। इसलिए इनका मठ के पीठ पर बैठना क्रांतिकारी घटना ही है। अस्पृश्य लिंगायतों के कई मठ कर्नाटक में हैं और वे मठ उरिलिंगपेद्दि मठ कहलाते हैं।

लिंगधारी लिंग धारण न करने वाले को चाहेगा तो उसे लिंग नहीं,
जिसका लिंग नहीं है उसका कोई प्रयोजन नहीं।
जिसका कोई प्रयोजन नहीं, उसका कोई मित्र नहीं, कोई कुछ नहीं देंगे।
इस कारण से
दुराशा को छोड़कर, आशा रहित होकर
लिंग का आश्रय लेने से प्रसाद मिलेगा
प्रसाद से इह और पर कि सिद्धी होगी।
उरिलिंगपेद्दी प्रिय विश्वेश्वरा।/ १५७९ (1589) [1]

लिंग के ज्ञान लिंगवंत सर्वांगलिंगमूर्ती है
उनका कथन ही वेद है।
उनका व्यवहार ही शास्त्र, पुराण, आगम, चरित्र है।
उस महामहिम की बातों पर तर्क नहीं कर सकते।
व्यवहार में नास्तिक हो तो नरक मिलने से नहीं चूकता
लिंग के ज्ञाता महामहिम को नमो नम: कहूँगा
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। / १५८१ [1]

’उरिलिंगपेद्दिप्रिय विश्वेश्वरा’ वचनांकित से रचे इनके ३६६ वचन प्राप्त हुए हैं। उन वचनों में गुरु महिमा के लिए ऊंचा स्थान प्राप्त है। साथ ही लिंग जंगम तत्व-विचार, कुल-जाति की समस्या आदि निरूपित हैं। वचनों के बीच विपुल मात्रा में संस्कृत श्लोक जो उद्ध्वत हैं, उससे इनके पांडित्य का परिचय मिलता है।

सूर्य के बिना दिन है क्या भैय्या?
दीप के बिना प्रकाश है क्या भैय्या?
पुष्प के बिना सुगंध को पहचान सकते हैं क्या भैय्या?
सकल के बिना निष्कल को देख सकते हैं क्या?
मह-परवस्तु अव्यक्त परशिव को लिंग ने दिखाया
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। / १५८८ (1588) [1]

स्तनामृत का सेवन करनेवाला शिशु शक्कर चाहता है क्या?
स्पर्शमणी को पाया हुआ पुरुष स्वर्ण मिश्रित राख धोना चाहेगा क्या?
दासोह करनेवाला भक्त मुक्ति को चाहेगा क्या?
इन तीनों की और कोई इच्छा नहीं
स्वादिष्ट पदार्थ के समान लिंगपद सहज सुख है
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। / १५९० (1590) [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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