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वैद्य संगण्णा (1160)

पूर्ण नाम: वैद्य संगण्णा (1160)
वचनांकित : मरुळशंकरप्रिय सिद्धरामेश्वर
कायक (काम): वैद्य, चिकित्सक (Doctor)

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भक्त का एक ही , केले का एक ही फसल
विरक्त छोड़े को फिर ग्रहण करेगा तो
वह मृतश्वान के दुर्गध जैसा है।
फिर सत्क्रिया में चलनेवाला व्यक्ति, अपना नित्यनियम तोड़कर
गलत रास्ते पर चले तो, फिर धन देकर,
भक्तों से अपनी भूल सुधारने की सोचकर आनेवाले
ब्राह्मण दिखे तो, वे
मरुळ शंकरप्रिय सिद्धरामेश्वर
लिंग होने पर भी, उनसे मिलना नहीं चाहूँगा। / 2029 [1]

संगण्णा ने वैद्य वृत्ति के कायक में निरत होकर शरण बनकर उत्तम वचनों की रचना की है। ‘मरुळशंकरप्रिय सिद्धरामेश्वर' वचनांकित में रचित 21 वचन मिले हैं। अधिकतर वचन में वैद्यवृत्ति की परिभाषा में तत्वबोध कराया गया है। यहाँ पर उल्लिखित नाडि विवरण, व्याधि और औषधोपचार के प्रकार आदि से वचनकार की वैद्यशास्त्र में परिणति का परिचय मिलता है, साथ ही वचनकार ने जो तात्विक परिवेश के साथ उन्हें जोड़ा है उसमें शरणत्व का भी बोध बोता है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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