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वीरगोल्लाळ (1160)

पूर्ण नाम: वीरगोल्लाळ, काटकूट
वचनांकित : वीर बीरेश्वर
कायक (काम): भेड बकरियों को चराने वाला (sheep herder)

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शिला, लिंग नहीं, वह छैनी के नोक से टूटता है,
वृक्ष, ईश्वर नहीं, वह आग में जल जाता है,
मिट्टी भगवान नहीं, वह पानी में मिल जाता है।
इन्हें जानने का चित्त ईश्वर नहीं,
वह इन्द्रियों के वश में आकर, सत्वहीन हो जाता है।
इनको छोड़कर जो परवक्तु है उसकी जगह है -
वह जो भी सामने है, उनका साथ न होते
स्वीकृत व्रत को छोड़कर दूसरा व्रत न करते हुए।
विश्वास रखकर, स्थिर हो तो, उस निजलिंग के बिना,
दूसरे का न सोचते हुए, रहनेवाला ही सर्वांगलिंगी है।
वही, वीरबीरेश्वरलिंग में विलीन शरण है। / 2027 [1]

वीरगोल्लाळ बिजापुर जिला सिंदगी तालूक गोलगेरी ग्राम के थे। इनका मूल नाम काटकूट था। यह गढ़रिया थे भेड बकरियों को चराने का कायक करते थे। शिवभक्त के रूप में बहुत प्रसिद्धि पायी है। काव्य-पुराणों में इनके बारे में कथा निरूपित है। ‘वीर बीरेश्वर' अंकित में रचे 10 वचन मिले हैं। उनमें इनके भेड़ बकरी पालन के बारे में खूब विवरण मिलता है। ये मुग्ध भक्त थे। इन्होंने अपनी सरलता और आचारणशीलता से सामान्य लोगों को प्रभावित किया है। गोलगेरी में इनके नाम पर देवालय है और वहाँ हर साल मेला लगता है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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